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गाँधी के उत्तराधिकारी (एक विद्रोही लेख )

कलम...
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gandhiआज सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्र ,भ्रष्टाचार,आतंकवाद,महंगाई,नक्सलवाद,माओवाद ,अशिक्षा,बेरोजगारी,भ्रूण हत्या ,साम्प्रदायिक दंगो ,कुपोषण, बाल श्रम , बाल तस्करी ,स्त्री देह व्यापार , पूंजीवाद के साइड इफेक्ट , घोटालों  ,आर्थिक विभीषिका ऐसे कितनी मूल समस्याएँ  या यूँ कह लीजिये की कोढ़ सी तिक्त महामारी से ग्रस्त है ! जिसके सामाजिक उन्मूलन के लिए यदि किसी भी भारतीय से किसी एक समस्या की नितान्ता को तरजीह देने को कहा जाए तो ,शायद  वह निरुत्तर ही रह जाए !

समस्याओं का ग्राफ इतना जटिल और विशाल है की 121 करोड़   भारतीय यदि एक साथ एक जुट भी हो तो ,इससे लड़ने में लम्बा वक्त लगेगा !

क्या ऐसे ही भारतीय समाज के उत्थान का स्वप्न देखा था गाँधी जी ने ?  प्रशन उठता है , की यदि भारतीय राष्ट्र ,समाज ,नेता ,नागरिक ,संस्था हर वो व्यक्ति विशेष जो अपने मानस पटल पर महात्मा गाँधी को एक राष्ट्रपिता के रूप में रेखांकित किये बैठा है ,वो कंहा तक गाँधी के आदर्शो और सिद्दांतों  से एक व्यापक सम्बन्ध रखता है !

क्या हमने अपना एक चुटकी योगदान भी देश के विकास या उसके दर्द निवारण में दिया !

यंहा हर मोर्चे पर लड़े जाने की जरुरत है , देश के बहार घात लगाये बैठे दुश्मनों से भी खतरनाक घर में छुपे अक्ल के अकाल से ग्रस्त लोग है !यह अत्यंत शर्मनाक है की मुट्ठी भर अन्ना और रामदेव जैसे जागरूक सामाजिक निर्माणकर्ताओं को हम कुम्भकरणों की फौज को जगाने की विफल कोशिश करनी पड़ती है !

यह हमारे आचरण का फूहड़पन ही कहिये की दुराचरण, और दुष्टजन देशद्रोही चोर नेताओं की चापलूसी में लगे है !,हम बस किसी राजनैतिक पार्टी ,संस्था ,किसी एक मान्यता या विचारधारा के गुलाम है !

हमारी पहचान भारतीयता पर हमने खुद ही ऐसे बदजात ,बदनुमा थक्को और धब्बो का कालापन मढ़ा है ! हम तलवे चटुखोरों की अपनी कोई सोच या विचारधारा नहीं !

हमारी चमड़ी को कोई दर्द भेदता ही नहीं ,दिल बहरा बंजर ,और आँखे पाषाण असंवेदनहीनता  की शिकार है !

और सबसे बड़ी हास्यापद स्थिति यह की हम कुछ ज़िंदा देशभक्तों के आंदोलनों और आचरण का सूक्षम पोस्टमार्टम कर रहे है !

जबकि हमें निठल्ले,कामचोर, घोटालेबाज , महंगाई और भ्रष्टाचार के दामाद नेताओं का सघन काला कारनामा नजर ही नहीं आता !

क्या आप अपने आप को गाँधी का उत्तराधिकारी या भरतपुत्र होने की संज्ञा दे  सकते है !  कदापि नहीं , अपने आप को भारतीय कहने और भारतीय होने के झूठे ,बनावटी  दिखावे भर  से बहार निकलिय !

यह स्थिति बड़ी शर्मनाक और भयानक है की आज चार अक्षर ककहरा पढ़ कर हर भारतीय चारित्रिक निर्माण की उपेक्षा अपने ही नैतिक ,सामाजिक,आर्थिक पतन की और अग्रसर है !

लोकतंत्र के आधार को बचाने वाली मीडिया भी इसी अंधकूप में भटकी हुई है !  उसकी सुक्षमदर्शी समीक्षा आंदोलनों की बारीक से बारीक त्रुटियों को अंडरलाइन करने के घमंडी और नासमझ, नादान ,गवार प्रयास को अपने नैतिकता की प्रमाणिकता और जिम्मेदार स्तम्भ  के रूप में प्रस्तुत करती है ! यह कैसा राष्ट्रनिर्माण और जिम्मेदारी का निर्वाहन है !

साल भर से ज्यादा समय से चलने वाले एक आन्दोलन ,जिसने लगभग प्राथनाओं,अनशन,विभिन्न व्यवस्थाओं,प्रारूपों के विभिन्न चरणों को बड़ी शालीनता और सूझ-बुझ से निभाया हो , उसकी ईमानदारी और आंतरिक मंशा पर कोई भी प्रशन उठाना खुद के देशद्रोही होने का सबूत है !


वह खुद को सांप्रदायिक,धार्मिक , की संकीर्ण दकियानूसी विवादों में उलझाए हुए है ! उसकी निजी उद्देश्य को  देश हित का जामा पहना देश को दंगो की भट्टी पर रख तोड़ने का काम किया है !
हमें अपने मतलब से फर्क पड़े तो सोचे देश की , हमें तो किसी बिल्ली-कुत्ते की बोटी की लड़ाई सी आपसी खिचातन से ही मतलब है

क्यों हम अपनी ही जड़े काट रहे हैं ! क्या हमारा राजनैतिक अहम् इतना अहम् हो सकता है की हम अपनी मात्रभूमि की निर्मलता और उज्जवल उत्थान को ताक पर रख देंगे ! क्या हम कभी इस कुचक्र से बाहर नहीं निकल सकते ! जिसके निर्माणकरता हम ही है ! जब देश हम से बना है , तो इसमें व्याप्त समस्या भी तो हमारी जनी है !

फिर मुश्किल  कँहा है ! मुश्किल हमारी पहचान, हमारी वफादारी में है , हम देश से पहले किसी धर्म,पार्टी ,वर्ग ,रंग, से पहचाने जाते है !

भारत वंशजों और महात्मा गाँधी को अपना राष्ट्रपिता कहने वाले हर बूढ़ा,बच्चा,जवान,स्त्री,संस्था,नेता,मिडिया,

कलाकार,साहित्यकार,पत्रकार, हर वो आदमी उतार फेंके ये पाखंडी लबादा !

तुम किसी भी तरीके से गांधी के उत्तराधिकारी कहलाने लायक नहीं !

और  एक  बात  सिर्फ सरनेम गांधी होने से कोई गांधी का उत्तराधिकारी नहीं हो जाता ! गांधी का उत्तराधिकारी तो वोहै
जो अपनी भूमिका,दायित्वों ,आदर्शों,नियमन में गाँधी के सिद्धांतों को तरजीह दे !

अंत में अपनी कविता की पंक्तियों द्वारा इतना ही कहूंगा !

तुम्हारे खून का रंग पानी,

तुम्हे क्या ख़ाक आई जवानी !

मेरे लहू का कतरा-कतरा तिरंगा,

तन हिन्दुस्तान, जिगर हिन्दुस्तानी !

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