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“सिरफिरे गड्ढे”

कलम...
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बूढ़े हो चले शहर को जैसे जवान होने का गंदा शौक हो चला था , चिलचिलाती धुप जैसे उसके साहस के  गिरेबान को पकड़ कर धोबी पछाड़ देने की भरसक कोशिश कर रही थी , पर सच है जब दिमाग पर कोई जुनूनी फितूर चढ़ता है ना तो कुछ नहीं समझ आता , न ही कोई उसे रोक सकता , ठीक ऐसा ही साहित्यिक जूनून, मुझे कब बदल गया पता ही नहीं चला ,

अब तो सोते-जागते आठो पहर विचारो के कीड़े दिमाग की बाती जलाये रखते है , कुलबुलाते रहते है और मुझे भी उबाले रखते है , खैर गाडी में बैठा में सोने की भरसक कोशिश कर रहा था और गाडी उड़नपरी की तरह 80 किलोमीटर /घंटा  के पंख लगाए उडी जा रही थी ,

अचानक ड्राइवर बाबु ने गाडी की नकेल कसी तो कनखी भरी आँखों से अनमने मन से जब मैंने  सामने देखा तो बदन के पिंजरे में कैद तोते तपाक से उड़ गय,होश ने धडकनों के टॉप गीअर को दबा दिया ,

सामने इक बड़े से बैनर पर लिखा था “गरीब गड्ढों का धरना प्रदर्शन”, और बैनर जैसे नए कपडे पहने बच्चे की तरह इठला इठला कर मुझे ही मुंह चिढ़ा रहा था, खुन्नस तो आई पर गुस्से को ठन्डे बसते में ये सोचकर रख दिया की भैया नेता लोगो को मामला होगा, क्यूँ पचड़े में पड़ना,

ख़ैर गाडी से उतर 11 नंबर की बस पर सवार मैं धरना प्रदर्शनकारियों को देखने की उत्सुकता में उस तरफ बढ़ा, भीड़ के बादल इस कदर फैले थे की “धरना प्रदर्शनकारियों ” देखना मुश्किल हो रहा था,

ख़ैर जैसे-तैसे धक्कम-मुक्की, रेलम-पेल कर मंच के समीप पहुंचा तो यकीन मानिय शरीर में काटो तो पानी नहीं, गला सुख गया ,

सामने मंच पर गड्ढे ही गड्ढे थे , जीवित गड्ढे , 6×6  के गड्ढे, छोटे गड्ढे , मोटे गड्ढे, बूढ़े गड्ढे , पतले गड्ढे और हाथ में झंडा  लिए थे, जिस पर लिखा था  “नेता जी, हमे बचाओ” ! साथ ही  जोर-जोर से  नारे लगा रहे थे , “हमे बेइमान नेता चाहिय, सडकों पर गड्ढों का आरक्षण चाहिय”

वँही  बिन बुलाये मेहमान की तरह हर जगह पहुचने वाली  ‘नारद’ सरीखी  मीडिया भी अपने अवसर की तलाश में थी ,

और  “धरना प्रदर्शनकारियों ” की संख्या कम देख रिपोर्टर बाबू लगे अवसर का भूजा भूजने ,

रिपोर्टर बाबू : माफ़ कीजिय पर यह आपका व्यक्तिगत मामला लगता है , शायद इस लिय आप जैसे और गड्ढा समुदाय यंहा नहीं पहुंचा !

बुजुर्ग गड्ढा (नेता)  : ये हमारे इमानदार हो रहे नेताओं का प्रकोप और गुंडागर्दी  है, जो उन्होंने सड़क के हाथों हमारी बस्तियां उजड्वा दी ! हमारी शादियाँ बंद करवा दी, और शादी-शुदा गड्ढों की नसबंदी तक करा दी ! अब हम बचे-खुचे गड्ढे ही बचे हैं, इसलिए हमारी संख्या कम है

रिपोर्टर बाबू को जैसे की सबको पता है  नीचा दिखने की खुजली होती है , इसलिय  उसने तत्काल ही —– — –

रिपोर्टर बाबू : पर माफ़ कीजिय आप लोग तो खानदानी अनपढ़ है , फिर आपने ये बेनर कैसे तयार किये , और यदि बाहर से छपवाया तो आपके पास इतना पैसा आया कँहा से !

बुजुर्ग गड्ढा (नेता) :(कुछ सकपकाते हुए) आप ने ठीक कहा ,ये बैनर हमने श्रीमान सज्जन पत्थर पेंटर से बनवाये हैं , हमने जो महान भ्रष्ट, हत्यारे, कमीने  नेताओं की सेवायें की ,उससे जो इनाम मिला ,आज उन्ही को अपनी बात मनवाने के लिए खर्च किया और कुछ नहीं !

रिपोर्टर बाबू : कैसी सेवा ?

तभी नेता जी का अपने चमचो के साथ आगमन — – – – – –

ये देख गड्ढे और जोर जोर से नारे लगाने लगे – – – -“हमे बेइमान नेता चाहिय, सडकों पर गड्ढों का आरक्षण चाहिय”

नेता जी अपने वफादार गड्ढों को इस तरह विद्रोह करते देख सन्न-सुन्न पड़ गए थे !

तभी बुजुर्ग गड्ढा (नेता) : नेता जी हमने आपके लिए क्या क्या नहीं किया ,आपने हमारे कंधो पर बैठ कितने ही वोट कमाए है ,आपके कितने ही पाप हमने अपने गड्ढो में दबाये हैं , कितने ही दुश्मन आपके इन गड्ढों में टपकाए हैं

नेता जी झट से आव देखा न ताव गड्ढों को झूठी दिलासा देते हुए , शीघ्र ही इक कमेटी आपके लिए गठित की जायगी!

बुजुर्ग गड्ढा (नेता) : हमे आपका भरोसा नहीं आपकी जुबान चाहिय ,

अब नेता जी जुबान कँहा से देते, जुबान तो वो  कई टुकड़े कर शहर में बाँट आये थे!

नेता जी अंटी में से हरी पत्तियाँ निकाल चुपके से बुजुर्ग गड्ढा (नेता) की तरफ धीरे से बढाते हुए—-

पर बुजुर्ग गड्ढा (नेता) : बाबु जी जब रहेंगे ही नहीं तो क्या करेंगे इसका, अचार डालेंगे ?

अब तो नेता जी धरम संकट में फस गए, आखिर जिसके नाम पर किस्मत चमकाई, वाही आज गले की हड्डी बन गया था !और किस मुंह से गड्ढे को सड़क पर रहने देने की घोषणा करते !

फिर जाने क्या मन्त्र धीरे से बुजुर्ग गड्ढा (नेता) के कान में पढ़ा की सारे गड्ढे मंच से उठे और चल दिए नेता जी की ऊँगली पकड़ ,

और नेता जी ने फिर जनता का  ये कह उल्लू काट दिया की मेरे शब्दों के जादू ने इन मासूम गड्ढों का ह्रदय परिवर्तन कर दिया है ,

मै सोचने लगा की ये मासूम गड्ढे कंही बाल्मीकि , कालिदास की तरह कोई महाग्रंथ ना लिख दे !

पर मेरे दिमाग का कीड़ा मुझे कहने लगा पता करो ऐसा क्या कह दिया नेता जी , जो सारे के सारे गड्ढे साधू हो गए !

खैर तभी मुझे अपने घर के समीप वाला गुस्सेल गड्ढा दिखाई दिया ,मै उसको चिढाने वाले अंदाज में बोला : बड़े आये थे धरना देने, अनशन करने ?

गुस्सेल गड्ढा : हूं~ हूं~ हूं~ ! तुम्हे क्या पता नेता जी ने हमे कहा की जब तक कंही भी सड़क नई नवेली दुल्हन की तरह सज संवर रही हो , अपना घर सजा रही हो , कंही भी कुछ समय जाकर घूम आना , और जैसे ही बारिश हफ्तावसूली को धमके , तुम भी आकर इनके आँगन में अपना घर बना लेना ,बाकी में संभाल लूंगा ,

और कुछ चिढाने के से अंदाज में गुस्सेल गड्ढा आगे बढ़ गया !

और मै सोचता रहा – – – – – – – – – – –


“वाह रे ! अनशन ,धरना के फैशन का दौर,

सब है क्रांतिकारी साधू , डाकू,लुटेरा ,चोर ” !

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