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“बस नेता ही है मेहफूज”

कलम...
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हमारी थालिओं की भूख गायब, गायब है जिस्म से खून,
मेहफूज है मजबूरियाँ, जिस्म मे बस हड्डियाँ ही हैं मेहफूज !

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हमारी रसोई से आटा-दाल-सब्जी गायब, गायब मीठा और सुकून,
मेहफूज है खाली डिब्बों मे महंगे कंकड़, पेट मे बस पत्थरी ही हैं मेहफूज !

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हमारे सर की छतनार गायब, गायब अपनी पुश्तैनी जमीन,
मेहफूज है बेमन नींद फुटपाथ पर, बदन पर फटा कुर्ता पजामा ही हैं मेहफूज !

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हमारी अर्जियां फाईलों से गायब, गायब दफ्तर से बाबुजी और मुनीम,
मेहफूज है नए आवेदन प्रारूप , अभी और नए दफ्तर के चक्कर है मेहफूज !

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हमारे घरों से हंसी गायब ,ख़ुशी गायब , नदी गायब और सड़क गायब ,
मेहफूज है बस मुफलिसी की बीमारियाँ, बस अब मरना है मेहफूज !

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हमारे देश की उन्नति गायब, गायब हो रहा गरीब आंम आदमी,
मेहफूज है बस पार्टियाँ ,अब इस गुलिस्तान मे बस नेता ही है मेहफूज !

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देखो अब ये हालात है की क्या-क्या गायब कर रही राजनीती ,
गनीमत है अभी वतनपरस्ती है सलामत, और कौमी एकता है मेहफूज !

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