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है दान यहाँ क्यूँ मुर्दों सा,
ये मंदिर है मरघट नहीं !
रोज मरती है जिंदगियां सडको पर,
जाओ उन्हें पहले जिन्दा करो,
रह गया जो सींक सूख के कंकाल भर !
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है कपाट बंद क्यूँ कब्रिस्तान सा,
ये देवालय है कोई खंडर नहीं !
आबरू बेघर, कुचली नींद फुटपाथ पर,
रैन बसेरा सा, ला लावारिसो की छतनार करो,
सोते है जो मेमेनें भेड़ियों संग, रख के प्राण हथेली पर !
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है पीली गिन्नियों, हरी गड्डियों में क्यूँ ध्यान इतना,
वो ब्रह्म है, बनिया या साहूकार नहीं !
गाँव बंजर सारे, अक्क्षरता संसार भर,
ढींड भर भर पहले उनको विद्वान् करो,
जिनकी मौत गिरवी,बदनसीबी की दुकान पर !
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सजाओ शौक से मंदिर, चाहे मारो पोछा प्रांगन भर
धो धो प्रभुचरण पियो, चाहे मांजो श्रद्धा से जी-जी भर जूठन
पर बंद करो सीधे हाथ से उल्टा कान पकड़ना,
मंदिर में भजन, जग जीभ से छूरी घोंपना ,
जाओ अभागो संग पहले अपना भाग जोड़ो,
सीखो दो कर-पदों को लाखों करोड़ों करना !
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मित्रो ये कविता भर नहीं है , आहवाहन है की आओ बदले इस पाखण्ड को !
चन्दन राय
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