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मेरे लहू का कतरा-कतरा तिरंगा

कलम...
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मेरे लहू का कतरा–कतरा तिरंगा


तुम्हारे खून का रंग पानी,

तुम्हे क्या ख़ाक आई जवानी,

मेरे लहू का कतरा-कतरा तिरंगा,

तन हिंदुस्तान, जिगर हिन्दुस्तानी !

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तुम्हारे सोने के महल काले,

बंद तिजोरियों मे चीखें,सिसकियाँ,लाश,घोटाले,

वतनपरस्ती से लीपी हमारी बस्तियां,देशभक्त हीरा,

खुला खजाना देशप्रेम, बाँट रहे हम मतवाले !

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तुम्हारे सूखे खोखले दिलो-जिस्म बंजर,

तुमने सीखा छीनना, रोटी,जमीं,मुंह के निवाले,

हमारी सांस, रूह, अंग, अंश-अंश भारत,

हमने एक रोटी से हज़ार पेट पाले !

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तुम्हारी महफ़िलों का मौसम रुपइया,

काली आत्मा, काली जमीर, काली ईमान

यँहा अपनी मौत भी बसंती,

सीना भारत गौरव, सर भारत स्वाभिमान !

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तुम्हारी रसोई बूचड़खाना,

रोज हलाल आम आदमी,

तुम्हारी थालियों मे भूनी मजबूर प्रजा,

जबड़ो मे गरीबगोश्त, तुम्हारी भूख अधर्मी  !

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संभल गद्दार, मातृभूमि कोख का सौदा करने वाले,

किसी गंगा तट पर नहीं धुलते पाप देशद्रोह वाले,

तडपते है मरकर भी, भटकते हैं भूत बनकर,

देते नहीं बसर उसे, नभ धरा लोक परलोक वाले !

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I am proud to be an Indian.

Chandan Rai



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